रविवार, 6 जनवरी 2013

मुझे सतनाम देना ,


नामवाले , ऊँची  शान, मुझे  सतनाम  देना ,
एक भुला  मुसाफिर हूँ,  मुझे  मुकाम  देना -
*
मुकद्दर में खाक दे  दे ,शिकायत  नहीं  मुझे
होठों  पर   मेरे  मालिक , अपना  नाम देना -
*
माना   की  नामुराद , मेरी  तरह  नहीं  कोई
आया  हूँ   तेरे   दर  पे , मेरा  सलाम   लेना -
*
हसरत है  तेरे  दर  की, फासले  हैं दरमियाँ ,
गिर  पड़ें  की  उससे पहले ,हाथ  थाम लेना-  
*
वन्दगी ही मेरी दौलत,तख्तो ताज तेरी दया
पाओगे सरफ़रोश सदा,जब भी फरमान देना-
*
पनाही  में   तेरी   बसर  हो,  ख्वाब   है  मेरा  
तेरी    राह   में   निगाहें  मुझे    पयाम   देना-  

                                        - उदय वीर सिंह  

7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गुरुओं का आशीर्वाद बना रहे।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

वाह!
आपकी कल प्रविष्टि आज दिनांक 07-01-2013 को चर्चामंच- 11117 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सुंदर अरदास है।

रचना दीक्षित ने कहा…

मेरी भी यही प्रार्थना है.

सुंदर विचार.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

हसरत है तेरे दर की, फासले हैं दरमियाँ ,
गिर पड़ें की उससे पहले ,हाथ थाम लेना-

अतिसुन्दर भावनामय अतिसुन्दर रचना.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति। सुप्रभात...!
वाहे गुरू जी का खालसा,
वाहेगुरू जी की फतह!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…



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♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
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नामवाले , ऊंची शान, मुझे सतनाम देना
एक भूला मुसाफिर हूं , मुझे मुकाम देना

मुकद्दर में खाक दे दे ,शिकायत नहीं मुझे
होठों पर मेरे मालिक , अपना नाम देना

वाऽह ! क्या बात है !
ओजपूर्ण शब्द !
सुंदर अरदास !
ख़ूबसूरत और सार्थक रचना !

आदरणीय उदय वीर सिंह जी
आध्यात्म और भक्ति का यह रंग बहुत अच्छा लगा ...

आभार सहित
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…

राजेन्द्र स्वर्णकार
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