नामवाले , ऊँची शान, मुझे सतनाम देना ,
एक भुला मुसाफिर हूँ, मुझे मुकाम देना -
*
मुकद्दर में खाक दे दे ,शिकायत नहीं मुझे
होठों पर मेरे मालिक , अपना नाम देना -
*
माना की नामुराद , मेरी तरह नहीं कोई
आया हूँ तेरे दर पे , मेरा सलाम लेना -
*
हसरत है तेरे दर की, फासले हैं दरमियाँ ,
गिर पड़ें की उससे पहले ,हाथ थाम लेना-
*
वन्दगी ही मेरी दौलत,तख्तो ताज तेरी दया
पाओगे सरफ़रोश सदा,जब भी फरमान देना-
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पनाही में तेरी बसर हो, ख्वाब है मेरा
तेरी राह में निगाहें मुझे पयाम देना-
7 टिप्पणियां:
गुरुओं का आशीर्वाद बना रहे।
वाह!
आपकी कल प्रविष्टि आज दिनांक 07-01-2013 को चर्चामंच- 11117 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
सुंदर अरदास है।
मेरी भी यही प्रार्थना है.
सुंदर विचार.
हसरत है तेरे दर की, फासले हैं दरमियाँ ,
गिर पड़ें की उससे पहले ,हाथ थाम लेना-
अतिसुन्दर भावनामय अतिसुन्दर रचना.....
सुन्दर प्रस्तुति। सुप्रभात...!
वाहे गुरू जी का खालसा,
वाहेगुरू जी की फतह!
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
नामवाले , ऊंची शान, मुझे सतनाम देना
एक भूला मुसाफिर हूं , मुझे मुकाम देना
मुकद्दर में खाक दे दे ,शिकायत नहीं मुझे
होठों पर मेरे मालिक , अपना नाम देना
वाऽह ! क्या बात है !
ओजपूर्ण शब्द !
सुंदर अरदास !
ख़ूबसूरत और सार्थक रचना !
आदरणीय उदय वीर सिंह जी
आध्यात्म और भक्ति का यह रंग बहुत अच्छा लगा ...
आभार सहित
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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