जीने नहीं देता-
दौर - ए - आवारापन जीने नहीं देता,
खुले हैं जख्म इतने , सीने नहीं देता-
परायी सी हो गयी है सौगात जिंदगी ,
चाहते हैं पीना गम, पीने नहीं देता-
कलियों की बेबसी दोजख कबूल है
जालिम है जमाना खिलने नहीं देता-
बेबसी है सितम सहकर भी जीने की
बसा है दर्द आँखों में ,रोने नहीं देता-
तमगे भी मुफलिसी के यार न हुए
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता -
-उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट की चर्चा 10-01-2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं
तमगे भी मुफलिसी के यार न हुए
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता
इस शेर पर हजार-हजार दाद..................
तमगे भी मुफलिसी के यार न हुए
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता,,
बेहतरीन शेर के लिए बधाई,,,उदयवीर जी,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
गजब अभिव्यक्ति...सच में कितनी बाधायें खड़ी कर रखी हैं..
कलियों की बेबसी दोजख कबूल है
जालिम है जमाना खिलने नहीं देता-...
ये ही तो दुःख की बात है
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