बुधवार, 9 जनवरी 2013

जीने नहीं देता--


जीने  नहीं देता-


दौर - ए - आवारापन जीने  नहीं देता,

खुले  हैं जख्म  इतने , सीने नहीं देता-

परायी सी  हो गयी है सौगात जिंदगी ,

चाहते  हैं  पीना गम,  पीने  नहीं देता-

कलियों  की   बेबसी  दोजख कबूल है

जालिम  है जमाना  खिलने नहीं देता-

बेबसी  है सितम सहकर भी जीने की

बसा  है   दर्द  आँखों में ,रोने नहीं देता-

तमगे  भी  मुफलिसी   के  यार  न  हुए 
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता -
  
                                       -उदय वीर सिंह  




5 टिप्‍पणियां:

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस पोस्ट की चर्चा 10-01-2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

तमगे भी मुफलिसी के यार न हुए
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता

इस शेर पर हजार-हजार दाद..................

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

तमगे भी मुफलिसी के यार न हुए
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता,,

बेहतरीन शेर के लिए बधाई,,,उदयवीर जी,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गजब अभिव्यक्ति...सच में कितनी बाधायें खड़ी कर रखी हैं..

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

कलियों की बेबसी दोजख कबूल है
जालिम है जमाना खिलने नहीं देता-...

ये ही तो दुःख की बात है