शायद अब सांप बनने लगे हैं फूल,
वरना हमने जेब में गुलाब रखे थे -
कमाल है पढ़े जाने लगे हैं धर्म-ग्रन्थ
वरना जेलों में तो कसाब रखे थे -
मशगुल थे सिर्फ सवाल पूछने में,
सवालों में ही कितने जवाब रखे थे -
अंदेसा है फरेब का कहते सरेआम
पढ़ न सके पास में किताब रखे थे-
नादाँ थे , न पहचान सके पत्थरों में
कितने हीरे लाजवाब रखे थे-
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
अंदेसा है फरेब का कहते सरेआम
पढ़ न सके पास में किताब रखे थे-
बहुत दमदार..
नादाँ थे,न पहचान सके पत्थरों में
कितने हीरे लाजवाब रखे थे,,,उम्दा शेर -
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