शुक्रवार, 15 मार्च 2013

संवेदना की शाख पर उल्लू बैठे हैं ,






संवेदना    की   शाख    पर  उल्लू  बैठे हैं ,

पूछते  हैं ,आप  कैसे  हैं ?

आप   ने    पढ़ा   था   न,  कल   का   अखबार 

दामिनी   के    हत्यारों   से  हमदर्दी व  प्यार, 
रोज   एक   नयी  दामिनी  आज भी मरती है
यह   एक   आम  घटना  है  संवेदना कहती है - 

घडियाली  आँखों  से  कुछ बूंद टपकते हैं - 

पूछते हैं आप कैसे हैं ......

बंधक  है  लाश  अस्पतालों में, दवा  के दाम में 

प्रसूता  शिशु   को  जन्म  देती है बाहर लान में
देखा  एक  नजर सड़क पर मुंह  फेर चल दिया
देह तड़फती  पड़ी है, अनजान  सी  सुनसान में -

न किसी हमदर्द के पांव रुकते हैं ......


बस्तियां  बनाकर उजाड़ लेने  का दर्द  उनसे पूछो 
रोज कुआ खोद प्यास बुझाने का   दंश उनसे पूछो
अभिशप्त  पूछते   हैं  अपना  वजूद  ढूंढ़ते  हैं वतन
बंजारों और इन्सान में कितना है फर्क उनसे पूछो -
  
क्या कभी वो भी रोते हैं हंसते हैं .....

चुकाने को कर्ज, पेट की आग ढकने को नंगा  तन
विवस बेचने को नवजात एक माँ के हालात देखो -
सूखे स्तन से दूध नहीं खून रिसता है शिशु रोता है,
चाहा बेचना रुग्ण शरीर  न मिले  खरीददार देखो-

इंसानों के नहीं सूखे पत्तों के मोल मिलते हैं -  



होने  थे  हाथों में, कलम कागज शिक्षक का प्यार 
आये   हाथों   में  जूठे  बर्तन ,हलवाई  की फटकार 
तस्वीर  बननी   थी , जिन उँगलियों से, गल गयीं  
खिलना  था  बचपन , मुरझाया   जवानी   के  द्वार-

आँखों के ख्वाब आँखों में रहते हैं -  


                                                     -उदय वीर सिंह 








4 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बढ़िया है आदरणीय-

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

झंकझोरती कविता

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा सुंदर प्रस्तुति,,,

बीबी बैठी मायके , होरी नही सुहाय
साजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय..
.
उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,
जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,

दिगम्बर नासवा ने कहा…

होने थे हाथों में, कलम कागज शिक्षक का प्यार
आये हाथों में जूठे बर्तन ,हलवाई की फटकार
तस्वीर बननी थी , जिन उँगलियों से, गल गयीं
खिलना था बचपन , मुरझाया जवानी के द्वार-

गहरा आक्रोश लिए ...
हिला जाती है ये तस्वीर देश की ... बदलाव कभी आएगा ... कहा नहीं जा सकता ...