रविवार, 31 मार्च 2013

लेना - देना क्या -




इर्ष्या कहती   अपमान  सुनो
सम्मान  से लेना - देना  क्या-
मद   कहता  व्यभिचार  सुनो 
आचार   से   देना -  देना क्या-
खल     कहता    विद्वेष   सुनो 
विद्वान  से   लेना - देना   क्या-
छल-प्रपंच  असत्य से  कहते
सद्ज्ञान  से  लेना - देना क्या-
जिस  डाल पर बैठा  काट रहा-
अंजाम  से  लेना -  देना  क्या-
मूर्ख    कहे    मैं   ही  परमेश्वर
भगवान  से   लेना -देना क्या-
जंग   विजेता   से   कहती   है
इन्सान  से  लेना - देना  क्या- 
कपटी ,    धूर्त  ,  गद्दार    कहे 
हिंदुस्तान  से  लेना देना  क्या-  
कहते  नैन  सदा  हिय बसना   
सपनों से  लेना -  देना    क्या -

                     -  उदय वीर सिंह

 

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबको अपना मान है प्यारा,
खिंचता जाता सीधा मन।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... वैसे तो ये संसार अकेले ही काटना है ... तो किसी से लेना देना क्या ...
पर ऐसा संभव कहां है ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मूर्खता दिवस की मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-04-2013) के चर्चा मंच-1181 पर भी होगी!
सूचनार्थ ...सादर..!

Smart Indian ने कहा…

सही है!