उन्नयन (UNNAYANA)
शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013
.....तो साथ चल
चल सको तो साथ चल
सूनी पड़ी हैं विथियाँ -
उपकार कर जीवन हँसे
कब रोकती हैं रीतियाँ -
उर्मियों से उर भरा हो
संवर जाती हैं बस्तियां -
हों माझी- पतवार निश्छल
उबर जाती हैं किश्तियाँ-
खिलते हैं फूल जब जब
महकती हैं संस्कृतियाँ -
- उदय वीर सिंह .
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
ने कहा…
साथ चलना..प्रेरक रचना..
19 अप्रैल 2013 को 12:38 pm बजे
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1 टिप्पणी:
साथ चलना..प्रेरक रचना..
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