मेरे यार ! अजूबा देख
कि गूंगा बोल लेता है
हाथ लूले से हैं फिर भी
घूँघट खोल लेता है
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पड़ोसन कह रही थी कल
बिन गागर या गंगा जल
मन में मिश्री घोल लेता है-
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गधों कुत्तों व कोयल को
वक्त बे - वक्त पायल को
सुरों में तोल देता है-
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सुनी बस्तियों में स्वर
उदय होते नहीं अक्सर
नब्ज मुर्दों की टटोल लेता है-
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गुलाब कभी बोला, नहीं बोला
दिल के राज खोला नहीं खोला
पर दिल से रिश्ता जोड़ लेता है-
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
वाह !!! बेहतरीन रचना,आभार,उदय जी,,,
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सच कहा है..
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