क्या हो गया है शहर के मिजाज को
गले मिलते रहे , अब हाथों में दस्ताने हैं -
नफ़ा - नुकसान में आदमियत खो गयी
कई बार सोचता है घर का पता बताने में-
एक छतरी दो यारों की बारिस गुजर गयी
एक शहर मुफीद नहीं है रिश्ता निभाने में -
हम जहीन तालीमदां हो गए, या बे-तालीम
पल भी न लगा कस्रे -मुहब्बत को गिराने में -
पड़ी चौबारे में किसी कबीर की लावारिस लाश
कोई तंजीम न आई शमशान तक ले जाने में -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
नफ़ा - नुकसान में आदमियत खो गयी
कई बार सोचता है घर का पता बताने में-
गहन और कटु सत्य जीवन के ...!!
बहुत सुन्दर शायरी .
शुभकामनायें .
एक छतरी दो यारों की बारिस गुजर गयी
एक शहर मुफीद नहीं है रिश्ता निभाने में,,,,
-वाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
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सच है, यही हो रहा है।
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