मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

लावारिस ...कबीर

















क्या   हो   गया   है  शहर   के   मिजाज  को
गले  मिलते   रहे , अब   हाथों  में दस्ताने हैं -

नफ़ा -  नुकसान   में  आदमियत   खो  गयी
कई   बार  सोचता है घर  का  पता बताने में-

एक छतरी  दो  यारों  की  बारिस  गुजर गयी
एक  शहर  मुफीद  नहीं  है रिश्ता निभाने में -

हम  जहीन  तालीमदां हो गए, या  बे-तालीम
पल  भी  न लगा कस्रे -मुहब्बत को गिराने में -

पड़ी चौबारे में किसी कबीर की लावारिस लाश
कोई तंजीम न आई शमशान तक ले जाने में -


                                         
 -  उदय वीर सिंह



 



3 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

नफ़ा - नुकसान में आदमियत खो गयी
कई बार सोचता है घर का पता बताने में-
गहन और कटु सत्य जीवन के ...!!
बहुत सुन्दर शायरी .
शुभकामनायें .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

एक छतरी दो यारों की बारिस गुजर गयी
एक शहर मुफीद नहीं है रिश्ता निभाने में,,,,

-वाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
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प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, यही हो रहा है।