गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

लहरों के सफीने ..



जख्म  जिन्दा  हैं , तो   पीर  होगी  ही
रात   आई     है ,    सवेर     होगी     ही-

माँगा  नहीं  नसीब ,लिखा  है  खून  से

आये करीब हैं ,वो  भी करीब  होगी ही-

लहरों   के  सफीने पर  जीने  की  अदा  

दौर - ए -  मुश्किल,  मुफीद   होगी  ही-

वक्त -बेवक्त  हम  होंगे  यादों  के  सफ़र

इश्क वाले हैं मुहब्बत की बात होगी ही-

                           ---  उदय वीर सिंह  


1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ खोती, कुछ होती लहरें।