लहरों के सफीने ..
जख्म जिन्दा हैं , तो पीर होगी ही
रात आई है , सवेर होगी ही-
माँगा नहीं नसीब ,लिखा है खून से
आये करीब हैं ,वो भी करीब होगी ही-
लहरों के सफीने पर जीने की अदा
दौर - ए - मुश्किल, मुफीद होगी ही-
वक्त -बेवक्त हम होंगे यादों के सफ़र
इश्क वाले हैं मुहब्बत की बात होगी ही-
--- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
कुछ खोती, कुछ होती लहरें।
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