टूटती वर्जनाएं,
मर्यादा
की परिभाषाएं
गढ़े कौन......
अतिरंजित होते मूल्य ,
मूल्यांकन की बात करे कौन .....
टूटती वर्जनाएं,
विखरती लक्षमण रेखाएं
सत्यान्वेषण करे कौन ....
जब मौन हैं होंठ
भीष्म के .....
बंधक हैं भुजाएं
घर में गांधारी
ह़र सभा में धृतराष्ट्र
बैठा है .......
--- उदय वीर सिंह
7 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया,उम्दा सटीक अभिव्यक्ति!!! ,
Recent post: तुम्हारा चेहरा ,
दुखद परिस्थिति, कहाँ विदुर है
बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.
सही आकलन किया है हालात का
घर में गांधारी हो ,सभा में ध्रितराष्ट्र हो जहाँ, वहां न्याय कहाँ ?
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मर्यादा और वर्जनाओं का ध्यान रखना आवश्यक है. सुंदर प्रस्तुति.
सटीक प्रस्तुति ...
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