शनिवार, 27 अप्रैल 2013

टूटती वर्जनाएं,

मर्यादा
की परिभाषाएं
गढ़े कौन......
अतिरंजित होते मूल्य ,
मूल्यांकन की  बात करे कौन .....
टूटती वर्जनाएं,
विखरती लक्षमण रेखाएं
सत्यान्वेषण करे कौन ....
जब मौन हैं होंठ
भीष्म के .....
बंधक हैं भुजाएं
घर में गांधारी
ह़र सभा में धृतराष्ट्र
बैठा है  .......

               ---   उदय वीर सिंह

   

7 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया,उम्दा सटीक अभिव्यक्ति!!! ,

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प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दुखद परिस्थिति, कहाँ विदुर है

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.

vandana gupta ने कहा…

सही आकलन किया है हालात का

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

घर में गांधारी हो ,सभा में ध्रितराष्ट्र हो जहाँ, वहां न्याय कहाँ ?

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रचना दीक्षित ने कहा…

मर्यादा और वर्जनाओं का ध्यान रखना आवश्यक है. सुंदर प्रस्तुति.

दिल की आवाज़ ने कहा…

सटीक प्रस्तुति ...