रात मेरी अँधेरी, सहर न हुयी
पीर बढ़ती गयी मुक्तसर न हुयी -
हम चिरागों के दर से बहुत दूर थे
चाँद भी सो गया ,चांदनी घर गयी -
हम तो मजबूर थे रास्ते न मिले
क्या सितारों को भी कुछ खबर न हुयी -
मेरी आवाज भी लौट आई मुझे
मेरी रब से दुआ भी असर न हुयी -
जुगुनू भी भटकते रहे रातभर
रौशनी तो हुई कारगर न हुयी
- उदय वीर सिंह
7 टिप्पणियां:
सार्थक अभिव्यक्ति!
साझा करने हेतु आभार!
वाह आदरणीय वाह क्या मुसल्सल ग़ज़ल कही है, सभी के सभी अशआर दिल को छू गए लाजवाब हार्दिक बधाई
मेरी आवाज भी लौट आई मुझे
मेरी रब से दुआ भी असर न हुयी -..
Vaah ... Gazab ka bhav samete ... Lajawab sher ...
Kamal hai poori gazal ...
खूबसूरत गज़ल
बहुत प्यारी ग़ज़ल...
सादर
अनु
खुबसूरत गजल
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कम शब्दों में सारगर्भित बात.. बहुत ख़ूब।
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