रविवार, 21 अप्रैल 2013

क्या ओढेगा क्या बिछाएगा ..?


   
                       क्या ओढेगा क्या बिछाएगा ..?


अश्क बहा लोगे तो क्या दर्द का
सिलसिला  ख़त्म  हो  जायेगा -

बहाते रहे हैं सियासतदान अक्सर
क्या उनकी राह तू चल पायेगा -

अश्क को खून बनाने का जूनून रख
बहायेगा  तो   मंजिल   पायेगा - .

पांव की बेड़ियाँ कभी मंजिल देती नहीं
जब टूटेंगी  तभी दौड़ पायेगा-

सूखी रोटियां भी नहीं ,पानी में भिगोने के लिए
बहाने जीने के कब तक बनाएगा -

सोच आखिर शिर से पांव तक
शहर से गाँव तक तेरा क्या है
क्या ओढेगा क्या बिछाएगा .....

                       --   उदय वीर सिंह

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