जलाओ दिल मितरां कि चिराग जले
अँधेरा ही अँधेरा है बहुत दूर तक -
लगता है गर्दिशों में माहताब भी है
बादलों का बसेरा है बहुत दूर तक -
जद्दोजहद है निकलने की गिरफ्त से
उसकी बाँहों का घेरा है बहुत दूर तक ...
गुम है दामिनी भी नील निलय में कहीं
सन्नाटों का डेरा है बहुत दूर तक -
अंतहीन नीरवता में बिम्ब की तलाश
स्याह रातों का सवेरा है बहुत तक-
संवेदनाओं का द्वार कदाचित खुल ही जाये
वेदनाओं का जखीरा है बहुत दूर तक -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
दिशा मिले इस साहित्यिक उछाह को।
वाह..
अंतहीन नीरवता में बिम्ब की तलाश
स्याह रातों का सवेरा है बहुत तक-
बहुत सुन्दर!!
सादर
अनु
बहुत सुन्दर !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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