विस्वास की नींव, कितनी कमजोर हो गयी है ,
इतनी ऊँची उड़ी पतंग की बिन डोर हो गयी है -
पानी की कमी प्यासा है देश, रिपोर्ट कहती है
खून इतना सस्ता है ,सड़क सराबोर हो गयी है -
बाजार में खड़ी है ,बिकने को इंसानियत मितरां
पहचान में नहीं आती कितनी कमजोर हो गयी है -
रिश्तों का सूनापन बहुत दूर तक बिखरा हुआ है
सुबह कितनी अकेली है,शाम बहुत दूर हो गयी है-
तन्हा दर्द दिल का,ढोना है किसी मजदूर की तरह
बेटा हमदर्दी से दूर , बेटी मजबूर हो गयी है-
नुमायिस बन कर रह गयी है ज़माने में जीस्त
अब महफिलों में मुफलिसी मशहूर हो गयी है -
- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
पानी की कमी प्यासा है देश, रिपोर्ट कहती है
खून इतना सस्ता है ,सड़क सराबोर हो गयी है -
इन पंक्तियों ने झकझोर कर रख दिया है।
नुमायिस बन कर रह गयी है ज़माने में जीस्त
अब महफिलों में मुफलिसी मशहूर हो गयी है -
बेहतरीन प्रस्तुति सुंदर गजल ,,,
RECENT POST : बेटियाँ,
लाजवाब प्रस्तुति
बाजार में खड़ी है ,बिकने को इंसानियत मितरां
पहचान में नहीं आती कितनी कमजोर हो गयी है -
सादर
अच्छा लगा
आपकी यह रचना कल सोमवार (27 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
कितने कड़वे सच!
रिश्तों का सूनापन बहुत दूर तक बिखरा हुआ है
सुबह कितनी अकेली है,शाम बहुत दूर हो गयी है-
........बेहतरीन.......
एक टिप्पणी भेजें