मुझे जन्म मिले या मोक्ष इतर
जब तक बसुधा पररहना होगा
स्थान दिया यदि कोख मुझे
कौन्तेय तुम्हें कहना होगा-
ज्ञात नहीं अपराध हमारा
क्यों जीवन अभिशप्त हुआ
पल पल भींगा है त्याज्य तेरा
हृदय ज्वाल में दग्ध हुआ -
आ, त्याग भव्य प्रासादों को
मेरे झोपड़ में रहना होगा -
मैं कह सकूँगा ,तूं मां मेरी ,
तुम पुत्र मुझे , एक बार कहो ,
मैं भी तो तेरा जाया हूँ
अब भरी सभा स्वीकार करो -
ममता - माया दो राहों से
कोई एक तुम्हें चुनना होगा-
तेरे तो पुत्र अनेक, अनोखे
मेरी तो एक दुलारी मां
जो वैधव्य तुम्हारे साथ नहीं
तो क्यों संचित लाचारी मां ?
अपना पक्ष स्पष्ट करो
मेरा भी सुनना होगा -
मिथ्या प्रलाप अतिशय प्रघोश
किस वेदन को हर पाया
तज , स्पंदन संवेदनशीलता
घर, किसी हृदय में कर पाया-
तूं छाँव न दे निज आँचल की
पर अपमान मेरा ढकना होगा -
कह अंत करो बिखरा प्रतिवेदन
किस ज्वाल मुझे जलना होगा -
मैं सूत पुत्र ? या राजपुत्र ?
या देव - पुत्र ? कहना होगा -
- उदय वीर सिंह।
7 टिप्पणियां:
तूं छाँव न दे निज आँचल की
पर अपमान मेरा ढकना होगा -
कह अंत करो बिखरा प्रतिवेदन
किस ज्वाल मुझे जलना होगा -
मैं सूत पुत्र ? या राजपुत्र ?
या देव - पुत्र ? कहना होगा -,,,
बहुत ही सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,बधाई
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
अभी कर्ण चरित्र पढ़ रहा हूँ, सच में वह चरित्र प्रभावित करता है।
कर्ण-विलाप
तूं छाँव न दे निज आँचल की
पर अपमान मेरा ढकना होगा -
कह अंत करो बिखरा प्रतिवेदन
किस ज्वाल मुझे जलना होगा -
मैं सूत पुत्र ? या राजपुत्र ?
या देव - पुत्र ? कहना होगा -
एक सच जिसे कोई न कह सका....
सादर
कर्ण की वेदना को व्यक्त करती भावमयी रचना...आभार
अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कभी तो आदमी बन जाओ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह
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