गुरुवार, 6 जून 2013

मैं तेरा साया हूँ ...

तू   हमसफ़र  है , मैं  तेरा  साया हूँ 
जब भी आया हूँ साथ आया हूँ -

वक्त ने जब भी छोड़ा है तेरा दामन  
यक़ीनन मैं वक्त छोड़ आया हूँ -

ज़माने की फितरत है ,भूल जाने की 
मैं ज़माने को भूल आया हूँ -

आई मुश्किल रिश्तों ने साथ छोड़ा है,
हाथ पकड़ा है ,मैं निभाया हूँ -

तेरी जाति धर्म फिरका पूछा कभी नहीं 
तू  मेरा सरमाया मैं तेरा साया हूँ 



                                            - उदय वीर सिंह . 

10 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन ...सुन्दर सकारात्मक भाव ...!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

साया ही साथ दिखता है, रहता है।

रविकर ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

चरखा चर्चा चक्र चल, सूत्र कात उत्कृष्ट ।

पट झटपट तैयार कर, पलटे नित-प्रति पृष्ट ।

पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर ।

डालें शुभ शुभ दृष्ट, अनुग्रह करिए गुरुवर ।

अंतराल दो मास, गाँव में रहकर परखा ।

अतिशय कठिन प्रवास, पेश है चर्चा-चरखा ।

Unknown ने कहा…

आपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 08.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना..।
साझा करने के लिए आभार...!

राजीव रंजन गिरि ने कहा…

उत्कृष्ट रचना ...!!

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना !
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कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

achchi gajal hai

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

achchi gajal hai

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

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