गुरुवार, 11 जुलाई 2013

कविता मुझसे अनजान रही....

किसने    कहा    कवि    मुझे
कविता मुझसे  अनजान रही
अभिव्यक्ति बस रोक न पाया 
पाकर   नाम    अनाम    रही -

लिखने  का  उपक्रम  करता
कलम  प्रवाह में उलझ गयी -
अदृश्य  शैल   की  ठोकर में
व्यथित हुयी वो विरम गयी -

अतिवेगन में  मजबूर  चली
देश - काल   का  भान  गया -
बह   कर आई  कहाँ   किधर 
अनजान भँवर में भींच गयी-

शब्दों   के   फंदों  में  बंधकर
उलझी  कलम  व्यतिरेकों में
जमीं   हुयी   कालों  में  पीड़ा
तोड़ अनुबंध  चुप- चाप बही- 


अशेष  प्रेम  का  भव्य  कोष
निहितार्थ सृजन के गीत भरे
रस - रस गाउ चाह मेरी  थी
प्रत्याशित,लय निष्प्राण रही - 


निर्बाध  अक्षत  निर्द्वन्द  रही
छंद - वद्ध  , कभी  मुक्त  रही-
कारा , प्राचीर  स्वीकार्य नहीं
अवसाद  में  चाहे  शाम  रही - 


चाह बहुत सी उर संचित  थी
बन नद  प्रवाह  बह  जाने को-
संवेदन  की  नाव  के  नाविक
सब  चले  छोड़  गुमनाम रही-



                              - उदय वीर  सिंह 
 .         
















 


 









 




5 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर


कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री असली चेहरा : पढिए रोजनामचा
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/like.html#comment-form

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह रचना आज गुरुवार (11-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी पीड़ा हम सबकी पीड़ा है, कविता पूरा अन्तरमन कहाँ व्यक्त करती है, कुछ अपने पास भी रख लेती है।

Satish Saxena ने कहा…

सुंदर सरस एवं धारा प्रवाह ..

Satish Saxena ने कहा…

मधुरता लाजबाब है ..
शुभकामनायें आपको !