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भूल पराये - अपनेपन को
प्रेम , हृदय में संचित कर -
मनभावन आनंद भरा वह
दृश्य क्षितिज पट मंचित कर-
मिटा सके न दुरभि संधियाँ
प्रलेख पटल पर अंकित कर -
जागो जागे जग ज्योतिर्मय
एक अंशुमान आलोकित कर-
भ्रम नैराश्य दीन - दैन्यता
छाई मानस में खंडित कर -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आह्वान की उत्कृष्टता विचारों की स्पष्टता में दृष्टिगत है..बहुत ही सुन्दर।
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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