रविवार, 4 अगस्त 2013

लीरा -लीरा

हो पतझर भी लीरा -लीरा
मुस्कान अधरों पर लाओ तो -


लहराएगी बेल मरू में 

सरित प्रवाह को लाओ तो -

गाएगी कोकील मधुर गीत
ऋतू बसंत की लाओ तो-


ह्रदय- कलश में विष क्यों भरना
हिय प्रेम-सुधा सरसाओ तो- 


महकेगा आँगन गली कुञ्ज
पादप प्रसून लगाओ तो -


अतृप्त- धरा मानस भीगेगा
सावन स्नेह बरसाओ तो -


रस-रस कोपल-प्रीत बढ़ेगी
संकल्पित बीज लगाओ तो -



                                     उदय वीर सिंह

3 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

'रस-रस कोपल-प्रीत बढ़ेगी
संकल्पित बीज लगाओ तो'

बेहद सुन्दर!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, शब्दों की रिमझिम बरसाती पंक्तियाँ

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया, बहुत सुंदर