जब भाँड़ों की जमात गा लेती है महफिलों में
बिरुदावली जयचंदों की ,
करमवीर भूखा पेट खामोश रात,में रो लेता है -
**
बनाता है शीशमहल ऱोज जख्मी होते हैं हाथ
रात में जख्मों को सहला हल्दी लगाता है
तहबन पर रोटी के ख्वाबों में सो लेता है -
***
कर्ज से मुक्त होने को शहर आया था
घर बीमार जोरू ,जवान बेटी छोड़ आया था
अपनी लाचारियों पर आँखे भिगो लेता है -
***
खुशियों का झोला दे आता हर माह लाला को
मजबूरियों का गट्ठर ले आता है
खाकर मुट्ठी भर चबेना पानी पी लेता है -
***
भाई का हफ्ता, लाला के ब्याज पर मेहरबान है ख़ुदा
रुक नहीं सकता कभी ,
पांच रूपया फुटपाथ का हवलदार ले लेता है -
***
- उदय वीर सिंह
बिरुदावली जयचंदों की ,
करमवीर भूखा पेट खामोश रात,में रो लेता है -
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बनाता है शीशमहल ऱोज जख्मी होते हैं हाथ
रात में जख्मों को सहला हल्दी लगाता है
तहबन पर रोटी के ख्वाबों में सो लेता है -
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कर्ज से मुक्त होने को शहर आया था
घर बीमार जोरू ,जवान बेटी छोड़ आया था
अपनी लाचारियों पर आँखे भिगो लेता है -
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खुशियों का झोला दे आता हर माह लाला को
मजबूरियों का गट्ठर ले आता है
खाकर मुट्ठी भर चबेना पानी पी लेता है -
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भाई का हफ्ता, लाला के ब्याज पर मेहरबान है ख़ुदा
रुक नहीं सकता कभी ,
पांच रूपया फुटपाथ का हवलदार ले लेता है -
***
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
आज के परिवेश पर गहरे उतरती पंक्तियाँ।
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