बुधवार, 21 अगस्त 2013

राखी नजर खोलती है -

राखी नजर खोलती है -
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आसमां   डोलता  है   जमीं   डोलती  है  
मेरे   वीर   की   जब   जुबां  बोलती  है   -

नेह   संकल्प   का   आईना  मुस्कराए  
एक  प्यारी  बहन  की  ख़ुशी बोलती है  -

कच्चे  धागों  ने बाँधे हैं फौलाद  को भी
जब  अनमोल  बंधन  बहन  बांधती है -  

वचन  है , वसन है , शमशीर   समिधा 
मान  सम्मान खातिर  चली है जली है-

जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -

                                    - उदय  वीर सिंह.  




4 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -

बहुत सुन्दर!!!

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर
सार्थक पहल

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -बहुत सुंदर
latest post नेताजी फ़िक्र ना करो!
latest post नेता उवाच !!!


प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रक्षा की पुकार सदा ही रही है, उसी आश्वासन का उत्सवीय प्रतिरूप है रक्षाबंधन।