शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

जगाओ न वीथियों

जागो , जगाओ  न   सोने  दो  वीथियों 
मुद्दतों  के  बाद घर  नींद  मेरे आई  है-

सपने  सुहाने   दो  हमको   भी   देखने     

आँखे  उनीदीं   नींद  कितनी  परायी है-

बीते संवत्सर दिन निर्णय की आश में 
प्रतीक्षा की पाती आज पता ढूंढ़ आई है -

भ्रम  का  महल टूट  जाना ही अच्छा है ,

मरुधर ने प्यास कब किसकी बुझाई है -

जाओ  मुझे   छोड़   रहबर  न    चाहिए ,

स्मृतियों की सेज मेरे पास लौट आई है -

                         
   -  उदय  वीर सिंह 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

डूबने जो मुझे अपने ही स्वप्नों में।