जागो , जगाओ न सोने दो वीथियों
मुद्दतों के बाद घर नींद मेरे आई है-
सपने सुहाने दो हमको भी देखने
आँखे उनीदीं नींद कितनी परायी है-
बीते संवत्सर दिन निर्णय की आश में
प्रतीक्षा की पाती आज पता ढूंढ़ आई है -
भ्रम का महल टूट जाना ही अच्छा है ,
मरुधर ने प्यास कब किसकी बुझाई है -
जाओ मुझे छोड़ रहबर न चाहिए ,
स्मृतियों की सेज मेरे पास लौट आई है -
- उदय वीर सिंह
मुद्दतों के बाद घर नींद मेरे आई है-
सपने सुहाने दो हमको भी देखने
आँखे उनीदीं नींद कितनी परायी है-
बीते संवत्सर दिन निर्णय की आश में
प्रतीक्षा की पाती आज पता ढूंढ़ आई है -
भ्रम का महल टूट जाना ही अच्छा है ,
मरुधर ने प्यास कब किसकी बुझाई है -
जाओ मुझे छोड़ रहबर न चाहिए ,
स्मृतियों की सेज मेरे पास लौट आई है -
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
डूबने जो मुझे अपने ही स्वप्नों में।
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