सुना है बदले जाने लगे हैं अब
यार अपना जिगर बदल लेते -
नफ़रत इतनी आँखों में है मुद्दतों से
यार अपनी नज़र बदल लेते-
बावस्ता मैं रब से,बेशक तू मैकदे से
यार अपना घर बदल लेते -
उज्र है इतना इन्सानियती फ़िजाओं से
यार अपना शहर बदल लेते -
तुमको चुभते हैं मोहबतों के अल्फ़ाज
यार अपनी सोहबत बदल लेते -
उदय वीर सिंह
यार अपना जिगर बदल लेते -
नफ़रत इतनी आँखों में है मुद्दतों से
यार अपनी नज़र बदल लेते-
बावस्ता मैं रब से,बेशक तू मैकदे से
यार अपना घर बदल लेते -
उज्र है इतना इन्सानियती फ़िजाओं से
यार अपना शहर बदल लेते -
तुमको चुभते हैं मोहबतों के अल्फ़ाज
यार अपनी सोहबत बदल लेते -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
अपने मन की पुकार कहाँ बदलेंगे, वह तो आईना दिखायेगी ही।
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