गुरुवार, 8 अगस्त 2013

सुना है बदले जाने लगे हैं अब 
यार अपना जिगर बदल लेते -

नफ़रत इतनी आँखों में है मुद्दतों से 

 यार अपनी नज़र  बदल लेते-

बावस्ता मैं रब से,बेशक  तू मैकदे से 

यार अपना घर बदल लेते -

उज्र है इतना इन्सानियती फ़िजाओं से 

यार अपना शहर बदल लेते -

तुमको  चुभते हैं मोहबतों के अल्फ़ाज 
यार अपनी सोहबत बदल लेते -


                       उदय वीर सिंह 



                                   

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अपने मन की पुकार कहाँ बदलेंगे, वह तो आईना दिखायेगी ही।