-विषाक्त -
इंसानियत के खिलाफ।
उसके कदम
जमीं पर नहीं,
लाशों पर थे।
हाथों में कलम नहीं
पिस्तौल थी ,
आँखों में प्यार नहीं
नफ़रत थी
बेसुमार।
वो कल भी जिन्दा था
आज भी है।
आखिर !
क्यों है ?
उसके संसकारों से
इस ज़माने का
सरोकार।
उदय वीर सिंह
***
हैरानगी है,
उसका हर लब्ज था इंसानियत के खिलाफ।
उसके कदम
जमीं पर नहीं,
लाशों पर थे।
हाथों में कलम नहीं
पिस्तौल थी ,
आँखों में प्यार नहीं
नफ़रत थी
बेसुमार।
वो कल भी जिन्दा था
आज भी है।
आखिर !
क्यों है ?
उसके संसकारों से
इस ज़माने का
सरोकार।
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
भावपूर्ण रचना |
मेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
हिंसा को सब सिद्ध कर रहे,
अपने अपने आदर्शों से।
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