शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

तेरा वंदन ...

सदैव की भांति आज भी गुरु शिक्षकों का हृदय से वंदन -

स्पंदन    गुरु      जीवन   के 
शत-  शत   बार  तेरा वंदन ...
आलोक  तिमिर में संजीवन 
अभिनन्दन   है अभिनन्दन

टूटे  कारा , अज्ञान  दर्प  की 
प्रज्ञा   बसती  है  मानस  में 
युग्म   स्नेह   के   बनते  हैं,
खिलते प्रसून वन-कानन में-

अभ्नव शिल्प के   अग्रदूत
मंगलमय   तुमसे   जीवन -

संवेदन    आचार      निहित 
विहित  होती  गरिमा तुमसे 
संस्कार संस्कृति पथ शुचिता 
मधु   सरिता  बहती  तुमसे -

आकार नियंत्रण सृजन सौम्य  
बस   जाता   बंजर    निर्जन -

नील  गगन, बसुधा  तल  में
चक्षु   तेरे    प्रहरी    सम   हैं 
देश , दिशा, कालों   के  ब्रती 
निर्देश अशेष नित निर्मल हैं -

जग   सोये   तू   ,जाग्रत  है
युग  पावन   सद्द   अंतर्मन -

                           उदय वीर सिंह    

4 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

वंदन गुरुचरणों में, साकार कर दिया शब्दों ने!

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर
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Onkar ने कहा…

गुरु के सम्मान में सुन्दर कविता

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वन्दे श्री गुरुवे नमः