शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

हमें कहना नहीं आता-


उन्हें   सुनना   नहीं  आता
हमें    कहना  नहीं  आता-
उन्हें   मरना   नहीं  आता
हमें   जीना   नहीं   आता-
दे  जख्म  पर जख्म गहरे
कहते  सीना  नहीं  आता-
नंगे न हुए उनकी महफ़िल
कहते संवरना नहीं आता -
खोदे  खाईयां मेरी जानिब 
कहते  चलना   नहीं  आता -
प्यास पानी की, देते शराब
कहते हैं पीना नहीं आता -
कदम  चले  पूरब की ओर
कहते  मदीना  नहीं आता -
हैं  वो  बहारों में रहने वाले
कहते हैं पसीना नहीं आता-

                                  उदय वीर सिंह

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यही तो बिडम्बना है..