नीचे पैरों के जमीं नहीं वो
असमां की बात करता है
न वास्ता रस्मों -रिवाज का
रहनुमा की बात करता है -
अपनी जेब में रखता है
चाँद सूरज सितारे तोड़कर
जो देखा नहीं अपना चेहरा
हिन्दुस्तां की बात करता है -
न जाना मिजाज शोलों का
जलाने की बात करता है
रखता है फासले हाथों में
वो मुकद्दर की बात करता है -
मजहब क्या है इंसान का
नहीं मालूम , बांटता है दिल
पहचान नहीं एक हर्फ़ से भी
वो किताबों की बात करता है -
उजली कमीज छोड़ा नहीं घर
पीता रहासिगार सियासत का
जो गवाह है शहीदों के खिलाफ
शहादत की बात करता है -
घोंटता है गला, इंसानियत का
वो शराफत की बात करता है-
न झुका सिर,माँ-बाप के अदब
वो इबादत की बात करता है-
- उदय वीर सिंह
असमां की बात करता है
न वास्ता रस्मों -रिवाज का
रहनुमा की बात करता है -
अपनी जेब में रखता है
चाँद सूरज सितारे तोड़कर
जो देखा नहीं अपना चेहरा
हिन्दुस्तां की बात करता है -
न जाना मिजाज शोलों का
जलाने की बात करता है
रखता है फासले हाथों में
वो मुकद्दर की बात करता है -
मजहब क्या है इंसान का
नहीं मालूम , बांटता है दिल
पहचान नहीं एक हर्फ़ से भी
वो किताबों की बात करता है -
उजली कमीज छोड़ा नहीं घर
पीता रहासिगार सियासत का
जो गवाह है शहीदों के खिलाफ
शहादत की बात करता है -
घोंटता है गला, इंसानियत का
वो शराफत की बात करता है-
न झुका सिर,माँ-बाप के अदब
वो इबादत की बात करता है-
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
सन्नाट कटाक्ष..
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