शनिवार, 21 दिसंबर 2013

अपनी बेटी मिटाते हो कैसे-

खंजर  उठा  अपने  हाथों  में  अम्मा 
बेटी    पर   अपनी   चलाते  हो  कैसे -

निमंत्रण   पर  तेरे  चले  आये  अम्मा
बे -आबरू करके दर से उठाते हो कैसे -

तू  भी  बेटी  किसी  की  बेदर्द  अम्मा 
कोख में अपनी  बेटी मिटाते  हो कैसे-

दर्द नेजे से  कम तेरी नज़रों से ज्यादा 
मैला आँचल समझ फेंक आते हो कैसे-

रुखसती  में बहुत  याद आयेगे अम्मा 
अर्थी ,डोली  के  बदले  सजाते हो कैसे -

जख्म  देता जमाना कदम दर कदम 
सृष्टि की  सहचरी  को भुलाते हो कैसे -

                                   -   उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुर खुबसूरत रचना !
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अर्धजगत पर पूरी आस्था हो, सुन्दर शब्द..