खंजर उठा अपने हाथों में अम्मा
बेटी पर अपनी चलाते हो कैसे -
निमंत्रण पर तेरे चले आये अम्मा
बे -आबरू करके दर से उठाते हो कैसे -
तू भी बेटी किसी की बेदर्द अम्मा
कोख में अपनी बेटी मिटाते हो कैसे-
दर्द नेजे से कम तेरी नज़रों से ज्यादा
मैला आँचल समझ फेंक आते हो कैसे-
रुखसती में बहुत याद आयेगे अम्मा
अर्थी ,डोली के बदले सजाते हो कैसे -
जख्म देता जमाना कदम दर कदम
सृष्टि की सहचरी को भुलाते हो कैसे -
- उदय वीर सिंह
बेटी पर अपनी चलाते हो कैसे -
निमंत्रण पर तेरे चले आये अम्मा
बे -आबरू करके दर से उठाते हो कैसे -
तू भी बेटी किसी की बेदर्द अम्मा
कोख में अपनी बेटी मिटाते हो कैसे-
दर्द नेजे से कम तेरी नज़रों से ज्यादा
मैला आँचल समझ फेंक आते हो कैसे-
रुखसती में बहुत याद आयेगे अम्मा
अर्थी ,डोली के बदले सजाते हो कैसे -
जख्म देता जमाना कदम दर कदम
सृष्टि की सहचरी को भुलाते हो कैसे -
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
बहुर खुबसूरत रचना !
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
अर्धजगत पर पूरी आस्था हो, सुन्दर शब्द..
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