कहीं कुछ जल गया ,कुछ जल रहा
कुछ जलना कहीं अभी भी शेष है -
कहीं घर, संस्थान उद्यान गौरव
कही जला चिर मान भग्नावशेष है-
जला हृदय कहीं ,सम- भाव वैभव
जली कहीं पुण्य संस्कृति अशेष है -
हिल रही बुनियाद भूमि दलदली हुयी
प्रबुद्ध उद्दघोष नवनिर्माण का सन्देश है -
जल रहा मानस , आग जलती रहे
चिता द्रोहियों की जलनी अभी शेष है -
अवांछित रीत का संज्ञान ले ले शौर्यता
किसी व्यक्ति पंथ से कहीं बड़ा ये देश है -
- उदय वीर सिंह
कुछ जलना कहीं अभी भी शेष है -
कहीं घर, संस्थान उद्यान गौरव
कही जला चिर मान भग्नावशेष है-
जला हृदय कहीं ,सम- भाव वैभव
जली कहीं पुण्य संस्कृति अशेष है -
हिल रही बुनियाद भूमि दलदली हुयी
प्रबुद्ध उद्दघोष नवनिर्माण का सन्देश है -
चिता द्रोहियों की जलनी अभी शेष है -
अवांछित रीत का संज्ञान ले ले शौर्यता
किसी व्यक्ति पंथ से कहीं बड़ा ये देश है -
- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर वाह !
वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर...........
बहुत सुंदर भाव ...उज्ज्वल रचना ...!!बधाई ।
रक्त की यह ऊष्णता, लक्षण हमारा।
अब तो वही जलेगा जो कुत्सित है। समय बदल रहा है।
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