गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जो दीपों के स्वर होते....

जो    दीपों     के    स्वर   होते
तो अपनी  पीड़ा वे  कह   लेते  -

जितनी    लौ    उतनी   शोभा
जितनी ज्वाला  उतना प्रकाश-
दग्ध   ह्रदय    सहता   जलता
मानव    मन    पाता    उजास-

जग  की  रीत जला कर देखो
जलता    देख    हर्षित    होते -

मंदिर  वो  मस्जिद   में  जला
घर  आँगन , उपवन  में  जला
मद-  बसंत  पतझड़  में  जला
ग्रीष्म, शरद  सावन  में  जला-

कुछ  दर्द  पवन  ने लेना चाहा
एक  भीत  कवच  सी  रच देते  -

शिक्षालय  मदिरालय  में जला
देवालय   वेश्यालय   में   जला-
सवर्ण  कुटीर  महलों  में  जला
झुग्गी  में  अनाथालय में जला-

चुप  चाप जले  हर शाम जले
संवेदनहीन   जन    क्या  देते  -

मन    मयूर    जब   नृत्य   करे
जलती   ढिंग   दीपों   की  माला
जलता  हृदय  अभिनन्दन  थाल
जब   जले   दीप  सजती   शाला-

कौन  अंतस   की   आह  सुने
जो दो  बोल   प्रेम  के  गढ़   देते -


                       -  उदय वीर सिंह 

















बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

नैन उनके भी नम थे ......

नैन उनके भी नम थे ......

कभी  कह  सकेंगे  ज़माने को जाना 
उल्फत  भी  जिन्दा, थी  तेरे दम से -

निजामत  तेरी  थी, गुलशन भरा था 
खुशियां ज्यादा ,गम कितने  कम थे -

कोई जल गया कोई रुसवा हुआ भी
जब  तुम चले नैन,उनके भी नम थे -

किसकी ख़ुशी थी, किसके सितम थे 
सरमाया   दिल  के , बहारे  चमन थे- 

                                          - उदय वीर सिंह . 

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

हमें कहना नहीं आता-


उन्हें   सुनना   नहीं  आता
हमें    कहना  नहीं  आता-
उन्हें   मरना   नहीं  आता
हमें   जीना   नहीं   आता-
दे  जख्म  पर जख्म गहरे
कहते  सीना  नहीं  आता-
नंगे न हुए उनकी महफ़िल
कहते संवरना नहीं आता -
खोदे  खाईयां मेरी जानिब 
कहते  चलना   नहीं  आता -
प्यास पानी की, देते शराब
कहते हैं पीना नहीं आता -
कदम  चले  पूरब की ओर
कहते  मदीना  नहीं आता -
हैं  वो  बहारों में रहने वाले
कहते हैं पसीना नहीं आता-

                                  उदय वीर सिंह

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

राष्ट्र है तो हम हैं...


तुम्हें चिंता है -
धर्म की ,जाति की
समुदाय, अपने फिरके ,कुटुंब की . |
तुम्हें चिंता है -
शुचिता की आडम्बरों की
झूठी शान व परम्पराओं की 
दम तोड़ती बहसी इच्छाओं की ... |
तुम्हें चिंता है- 
क्षेत्रवाद, बंशवाद की,
श्रेष्ठता, आदिम रीत -रीवाज  परलोकवास की ,
सरोकारहीन इतिहास की .. |
क्या राष्ट्र से पहले आते हैं 
ये तेरे फितूर......?
जब भी छुटा राष्ट्र-भाव 
तिरोहित हुआ मान 
सिमटती गयीं सीमाएं 
मिली दासता अपमान 
शायद भूल गया तो याद कर ....|
राष्ट्र है तो हम हैं ,
राष्ट्र के इतर कुछ भी नहीं 
कुछ भी नहीं ...
न हिन्दू 
न मुसलमान ....|

                    -  उदय वीर सिंह 



  

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

तेरा नाम ले लिया -

गलियों  में  तेरी  मैंने  मकान ले लिया
अपने नाम तेरा सारा इल्जाम ले लिया -

पूछा  किसी  ने  हमसे तेरा रकीब कौन
आया  जुबाँ  पहले  तेरा  नाम ले लिया -

तेरी  हसीन  गलियां  खोया मेरा वजूद
माना  सजा  को  मैंने  ईनाम,ले  लिया --

रांझे तेरी गलियां सोणी,सूनी कैसे होणी
हीर ने  छेड़े  गीत  पायल तान ले लिया -

मेरा  नसीब  तूं  तेरा  साथ  मेरा  साया
बदले बहार  के  हमने  तूफान ले लिया-




                                    -  उदय वीर सिंह

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

उनको नजर आने दे -

उनको नजर आने दे -
--
सहरा  में  सावन , बरस  जाने  दे-
पीर पर्वत सी होई पिघल जाने दे -

गुलजार  गुलशन  तो  होगा उदय

दर से तूफान को, तू गुजर जाने दे -

कैसे  टूटी  कसम ,पूछ  लेंगे वजह

अपने कूचे में उनको नजर आने दे -

दीप बुझता है घर का तो बुझ जाने दे

रास्ते में मुसाफिर के जल जाने दे -

पत्थरों की तरह कोई जीना भी क्या

बनके जर्रा  हवा संग बिखर जाने दे -

                                       -  उदय वीर सिंह


रविवार, 13 अक्तूबर 2013

किसे जिंदगी की.....

किसे  जिंदगी  की.....
-
किसे   जिंदगी  की  जरुरत  नहीं  है 
किसने    कहा    खुबसूरत   नहीं  है -
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हमने माना उदय हादसा जिंदगी है 
ये रुखसत कब होगी मुहूरत नहीं है -
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ज़माने  ने  कब इसकी तारीफ की है
ख़ुशी कम इसे ज्यादा तकलीफ दी है -
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देखो जहाँ जिंदगी जिंदगी जिंदगी है
प्यार में सिर्फ है, आतिशी  में नहीं है -
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फूल काँटों का दामन सांझी जिंदगी है 
जिंदगी एक सफीना हुकूमत नहीं है -
-
धूप  में  छाँव  में हर शहर-गाँव में  है 
 लगाओगे  क्या  इसकी  कीमत नहीं है -
-
                                        उदय वीर सिंह                  


   

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

गुलाब कहते रहे -

रेशम में लिपटे काँटों को
हम गुलाब कहते रहे -
नीव खोदी ही नहीं गयी मितरां
मकान बनते रहे-
जो बन न सका जुगुनू भी,रात का
उसे माहताब कहते रहे -
जो कर गया टुकड़ों में वतन
सिरताज कहते रहे -
शुमार कर दिया आतंकवादियों में जिनको
वो इनकलाब कहते रहे -
झूल गए फांसी पर मर्द हंसते -हंसते
ना-मर्द वाह- वाह कहते रहे -
सारा जीवन हिंसा में ही गुजर गया
वो अहिंसा का पाठ करते रहे-
सोचा नहीं अवाम की दर्दो आवाज क्या है
 सौदाई  कारोबार करते रहे-

                         -  उदय वीर सिंह  

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

खंजर छोड़ देना -



जब अभिव्यक्ति को पसीना आये 
कलम तोड़ देना -

जब अभिव्यक्ति ढूंढ़ने लगे  निजामत
शहर छोड़ देना -

जब  करने लगे हिमायत जुल्म की 
अदब  छोड़  देना -

बिके बाजार में सामान की तरह 
यक़ीनन दर  छोड़ देना -

अभिव्यक्ति किश्ती है, डूब जाने का, 
डर छोड़ देना -

अभिव्यक्ति बन जाये हथियार उदय 
खंजर छोड़ देना -

                                               उदय वीर सिंह .

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

आंचल खरीद लेते- -

  1. आंचल खरीद लेते-
    -
    बिकते अगर जो बादल
    बारिश खरीद लेते -
    बिकती अगर जो आँखें
    काजल खरीद लेते-
    शहर से लेकर गाँव
    करता रहा तलाश
    मिल जाते प्रेम के पांव
    पायल खरीद लेते -
    पीना शराब छोड़ उदय
    कुछ पैसे बचाया कर
    ढकने को किसी की आबरू
    आंचल खरीद लेते-
    रहा प्यास का रकीबपन
    होठों से कभी नहीं
    जो बिकतीं अगर घटायें
    सावन खरीद लेते -

    - उदय वीर सिंह


    Photo: आंचल खरीद लेते- 
-
बिकते अगर जो बादल 
बारिश खरीद लेते -
बिकती अगर जो आँखें 
काजल खरीद लेते-
शहर से लेकर गाँव 
करता रहा तलाश 
मिल जाते प्रेम के पांव 
पायल खरीद लेते -
पीना शराब छोड़ उदय 
कुछ पैसे बचाया कर  
ढकने को किसी की आबरू 
आंचल खरीद लेते- 
रहा प्यास का रकीबपन
होठों से कभी नहीं 
जो बिकतीं अगर घटायें 
सावन खरीद लेते -

               उड़ी वीर सिंह .

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

जी ! आप बहुत अच्छे हैं

जी ! आप बहुत अच्छे हैं
इशारों में सबक देते हैं -

कभी देखी न जंग, रहे सिपहसालार
वक्त पर न  काम  आये  वो हथियार
वीरता की बैजयंती अनेकों सम्मान
म्यान  में  जंग  खाती  रही तलवार -

माहिर हैं पाने में पुरस्कार -
जी ! आप बहुत अच्छे हैं -

अभी तो जिश्म ,आबरू आचार बिका है
बेबसी विपन्नता लिए  लाचार  बिका है
आंसू व आवाज अब  कितने खामोश हैं
शरगोशियाँ हैं आज  समाचार  बिका है-

प्यार और जंग में सब जायज है
आप कहते हैं,जी ! आप बहुत अच्छे हैं
 
कितनी संजीदगी से बांटा है दिलों को
अब देश को बांटने पर  आप आमादा हैं
कितनी तरक्की  का हासिल है मुकाम
अब आप ही वजीर आप ही पियादा हैं -

झूठ कहते हैं लोग ,सिर्फ आप सच्चे हैं -
 जी ! आप बहुत अच्छे हैं

भूख भय भिन्नता पर कितना भरोषा है
छोरी-आवाम मजबूर उतनी करीब होगी
नजर जो नजर मिलाने की  कोशिश करे
जीतनी ऊपर उठी उतनी बदनसीब होगी -

वैसे नहीं हैं आप ,जैसा दिखते  हैं -
जी ! आप बहुत अच्छे हैं

         - उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

संग तराशोगे-

***
मूरत  निकल के आएगी 
जो संग तराशोगे-

आएगी दर मुकद्दर
अगर पता दोगे-

मुस्कराएगी ख़ुशी  तुमसे 
जब मुस्करा दोगे -

दिखेगा वो जो दिखा नहीं अब तक 
पर्दा जब उठा दोगे -

गुजर जाएगी गमें शाम पल में 
कोई गीत गुनगुना दोगे-

प्यार दिल में संजोये रखना 
मांगेगा कोई तो क्या दोगे -

                    उदय वीर सिंह . 

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

तेरा क्या जाता है -

तेरा क्या जाता है -
खेत हमारा अपना है
हम बोयें आलू  या  अफीम -
तेरा क्या जाता है -
अपने कुत्तों को रोटी 
ताज से मंगवा लेंगे-
गाय तो माता है उसको
 ब्रत    रखवा    लेंगे-
नागफनी हम बोयेंगे, न बोयेंगे बरसीम -
तेरा क्या जाता है-
देश  हमारा   अपना है
पैर   पसारे   सोना   है - 
ये  सोने    की   मुर्गी है 
इससे तो सिर्फ लेना है- 

शिकारी बने पाक या चीन 
तेरा क्या जाता है -
ताज   हमारा    तख़्त 
हमारा     क्यों   भूला-
राजा   तो    राजा  है,
चाहे  हो लंगड़ा- लूला-
राजतंत्र या लोकतंत्र  होंगे मेरे अधीन -
तेरा क्या जाता है -
आंसू   की  दरिया  होगी 
आंसू   का  सागर   होगा -
किश्ती पतवार नहीं होंगे
ना    कोई  माझी    होगा -
पीकर आंसू डूब मरेंगे जलीय जंतु व मीन-
तेरा क्या जाता है -

                                      - उदय वीर सिंह