मंगलवार, 26 नवंबर 2013

जन्म लेती प्रीत अंतस



जन्म    लेती    प्रीत   अंतस 

तब   सृजन   आकार   लेता -
अद्दभुत प्रगल्भ कोपलों  को 
नव     प्रखर    आधार   देता -

बिहँस    उठता  मान  पियूष 
पल    मंजरी    की   गोंद  में ,
चिर प्रतीक्षित सौंदर्य श्यामा
सौम्य   नवल   संसार   देता - 

उत्सव   सहेजे    अंक  बसुधा 
संज्ञान    सलिला    बह   चले 
हो निंमज्जित स्नेह - रस में 
शुभ भाव - प्रवर आभार देता -

संवेदनाएं       बांचती       कथ    
वेदन- पृष्ठ   की    हर   पंक्तियाँ 
लालित्य  का  प्रतिमान   बांधे 
शौर्य का अप्रतिम संसार  देता 

                                   उदय वीर सिंह 

शनिवार, 23 नवंबर 2013

सोना,,,

लगातार,
गूंजती सायरन की
आवाज !
एक बख्तरबंद गाड़ी में
लाया गया मरीज
सदमें से कोमा में है ...
बता रहा उसका मुनीम-
मालिक ने पढ़ी खबर-
विकास दर ऊँची
सोना गिरा निचे ...
मालिक भी गिर पड़े  औंधे मुंह  ... |
सवाल जीवन का है
भाव सोने का बढ़ा दो ,
मालिक को बचा लो ...
वरना !
पछताओगे सोना
घर- घर में
पाओगे ..... |

                 - उदय वीर सिंह

रविवार, 17 नवंबर 2013

भारत - रत्न.

सितारों  से  आगे   की  बातें  बहुत हैं ,
अभी   तो  घरौंदा  जमीं  पर बना दो-
 
बह  रहा है लहू आज  तक जिस्म से 
सपूतों के जख्मों पर मरहम लगा दो -

लुटाता वतन  अपने सीने की उल्फत  
राष्ट्र भक्तों के जीवन का जज्बा बता दो -

सूख जायेगी जो राष्ट्र भक्तों कि सरिता ,
छोड़   जायेंगे   सौदाई  पंछी  बता दो -

भारत - रत्न  , सिर्फ  सेवादारों   का है 
तनख्वाहियों को उनका माजी पढ़ा दो -

                                       उदय वीर सिंह 

[ref..यह सब Sachin R. Tendulkar vs. Assistant Commissioner of Income-tax, Range 193/ IT APPEAL NOS. 428 TO 430 AND 6862 (MUM.) OF 2008 के आधिकारिक दस्तावेज़ में दर्ज़ है। तो इन भाई सा’ब को खेल के लिए कोई सम्मान कैसे दे सकती है सरकार? जब वह खुद कह रहे हों कि he is a popular model who acts in various commercials for endorsing products of various companies… A major part of the income derived by him during the year is from the exercise of his profession as an ‘actor’ in these commercials... the income derived by him from ‘acting’ has been reflected as income from “business & profession”!!
और तो और, न्यायालय मे दिए शपथपत्र (जो अब इनकी नाक की नकेल बन जाएगा) मे ये लोग चीख चीख कर कहते कि हम तो भारत काप्रतिनिधित्व ही नही करते, ना ही हम सरकार से जुड़े है, हम तो सिर्फ़ एक क्लब है जहाँ कुछ खिलाड़ी हमारे कर्मचारी है, और अपने कर्मचारियों को खेलने के लिए हम विदेशों मे भेजते है। ना तो हम भारत मे क्रिकेट के सरोकार से जुड़े है और ना ही हम खेल मंत्रालय के अधीन है। पूरा शपथ पत्र अगर आप पढे तो आप इनकी महानता के गुण गाने लग पड़ो।
]






जग चानड़ होया ...


आदि गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव की पूर्व संध्या पर समस्त मानव - जाति को लख - लख बधाईयां व प्यार | 
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  " सतगुरु नानक परगटिया मिटी धुंध जग चानड़ होया "
    मिती कार्तिक पूर्णिमा,सुदी 1526  [A .D .1469 ] ननकाना साहिब [ तलवंडी -राय भोई ] लाहौर से दक्षिण -पश्चिम लगभग चालीस किलोमीटर दूर [अब पाकिस्तान में ] परमात्मा की समर्थ ज्योति का  उत्सर्ग |  पिता ,कालू राम मेहता और माँ, त्रिपता की पवित्र कोख  से जग तारणहार बाबे नानक का देहधारी स्वरुप आकार पाता है |  पूरी मानव जाति इस समय  वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की  अकल्पनीय स्थिति  बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच  नितांत  कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम  , यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक  देव जी को पठाया  | इस पावन- पर्व पर परमात्मा  के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही  समस्त मानव जाति को  सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ |
    बाबे बाबे नानक का मूल - दर्शन -
-आडम्बरों से दूर होना
-मनुष्यता की एक जाति
-विनयशीलता व आग्रही होना
-पूर्वाग्रहहीनता |
-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य
-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा
-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र
-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन
- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन
-जीवन की आशावादिता
आत्मा की मुक्ति  का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति
-आचरण और आत्म शुचिता  का सर्वोच्च प्राप्त करना
-ईश्वर में अगाध  आस्था  |
   आदि- २  | गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,
  " भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार " 
और
 " हरि गुरु दाता राम गुपाला "
     बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट  है -
                    "गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "
बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -
           "एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ  निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि " 
  में  ढाल कर  समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन  जाता है  |
   बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये  बाबा नानक  समूची मानवता को प्रेम  का सन्देश देते हैं कहते हैं -
    माधो , हम  ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा  |
     हम  पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां
    हम  मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता            ....माधो . |

     जीवन की मधुरता ,सात्विकता और रचनाशीलता में है , बाबा कैद में भी ,अपनी उदासियों में भी ,निर्विकार भाव से अहर्निश जीता है ....उसे परमात्मा की  ओट पर पूरा विस्वास है ,-
          "साजनडा  मेरा साजनड़ा  निकट खलोया  मेरा  साजनड़ा "  |
  बसुधैव कुटुम्बकम कि वकालत करते हुए बाबा  जी ने अन्वेषण ,अनुसन्धान को कभी रोका न नहीं ,मिथकों को तोड़ स्वयं भी देश से बाहर गए और उनके सिख विश्व के प्रत्येक भाग में उनकी  प्रेरणा से यश व वैभव सम्पदा से सुसज्जित हैं . |  ज्ञानार्जन  को सिमित या कुंठित नहीं किया . |
  समाजवाद का बीज बाबा नानक ही बोता  है ,कर्म कि रोटी को दूध कि रोटी साबित  करता  है -
" किरत करो बंड  के छको ". |
    आदि गुरु मानव -मात्र  कि सेवा मे स्वयं को  निंमज्जित करते हैं ,  सर्व प्रथम मानव मात्र के लिए भला चाहते हैं ,बाद में अपना स्थान रखते है -
         " नानक नाम चढ़दी कलां ,तेरे  भाणे  सर्बत दा  भला "
अंत में लख -लख  बधाईयों के साथ -
          मुंतजिर हैं तेरी निगाह के दाते ,
          इस जन्म ही नहीं हजार  जन्मों तक  । 
   
  
                                                                                    उदय वीर सिंह 

       

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

लिखता हूँ इन्कलाब ,...

उसके नोचे गए बदन की पड़ताल में 
दूरबीन लगाता है, 
बहसी घूमता है सरेआम,
ये क़ानून तलाशता है -
**
लिखता हूँ इन्कलाब ,
बेअदब हो जाती है कलम ,
मुर्दों का शहर किसको जगा रहे हो -
**
तेरी मेंहरबानियों का मुझे गिला है ,
गर न होतीं तो मुझे रास्ता मिल गया होता -
**
जज्बातों  के घरौंदे टूट जाते हैं अक्सर 
पत्थरों को  जज्बात देके क्या करोगे- 
 **   
                          - उदय वीर सिंह .

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

सारी पीर दे दे -




                    
मेंरे हाथों  में  अब मेरी तकदीर दे दे 
जगह  प्यादे  की   मुझे  वजीर दे दे-

फतह  मेरी  हो जब  जंग लड़ी जाये 
कभी हारा न हो उसकी शमशीर दे दे-

मुमताजी यादों में अपना ताज होगा 
ख्वाबों का ही सही मुझे  जागीर दे दे-

लोग  कैसे  होते हैं क़त्ल बे-शमसीर   
मेरी  जुबान  को   वो  तासीर  दे  दे  -

मांगना  अच्छा  नहीं बार- बार ख़ुशी  
उदय  मेरे  हिस्से की  सारी पीर दे दे  -

                                - उदय वीर सिंह 

  


रविवार, 3 नवंबर 2013

डालर की तरफ-


दिल  में  नफ़रत  हाथ  में  सपोला है 
मोहब्बत  भी  है तिजारत  की तरफ -  

वक्त     कुछ    बदला  बदला  सा  है 
आ  रही   है  गेंद  बालर  की  तरफ -

पाउंड  की  अब  लालसा है ह्रदय में
रूपया  छोड़   हाथ  डालर की तरफ-

सन्देश में है फूल  की  जगह  खंजर 
वन्दगी छोड़ ,हाथ कालर की तरफ-

गीत  नहीं  शोकगीतों की  आमद है,   
कान खड़े  हैं , हर  आहट  की तरफ - 

अंदर  बार सजे हैं  नाजनी की तरह
पेट  का  सवाल है ,बाहर   की तरफ -

हर्फ़  किताबों के कुछ मायने कुछ और 
शायद हो गए हम राहे-कायर की तरफ - 

                                  - उदय वीर सिंह .