शनिवार, 4 जनवरी 2014

दिल्ली और देश



प्राथमिकताएं
देश की
रोटी कपड़ा मकान
शिक्षा सुरक्षा स्वास्थ्य
स्वच्छ जल ,हर हाथ को काम
दिल्ली  की
बिजली, पानी
सुसज्जित नगर, होटेल मोटेल
उच्च शिक्षण संस्थान
मेट्रो, वातानुकूलित बस, यान .....
दिल्ली के बने सपने
देश में बिकते हैं
खेत की फसल
दिल्ली से काटी जाती है
पकती है गांव में ,
रोटी दिल्ली में खायी जाती है
रमुआ अपनी झोपड़ में बिलबिलाता है
पियूष धाय संग खिलखिलाता है
दवाओं दुआओं के आलिशान
आसरे में जीता है
रमुआ ,दो बूंद
जिंदगी के पीता है
फिर भी  कुपोषण से
अपाहिज सी जिंदगी जीता है
तन बिकता है
कालाहांडी में भी
दिल्ली में भी ...
एक में पीड़ा एक में उत्सव है
यह निर्धारण तो होना ही चाहिए
क्या देश में दिल्ली है
या दिल्ली में देश है ....
या हमारी सोच
अपंग
या अशेष है .....
                 
                   उदय वीर सिंह

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लोकतन्त्र का यह गाढ़ा दुख कौन धोयेगा आज

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आपका-

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जले पर नमक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

इस कलुष को जनता को ही धोना पड़ेगा |
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