गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

सुबह का भूला

सुबह  का  भूला  शाम  को  दर पाये 
निराश, जिंदगी से लम्बी उमर पाये- 

ताजमहल की  बात गरीब कैसे कहे 

कम से कम  रहने को एक घर पाये -

काँटों की फसल से बसर कहाँ होता 

छाँव  के  जानिब  एक  शजर  पाये -

जीने  को  दो  हाथ मजबूत वो चंगे हैं 

इल्मदां  बने   हाथों   में   हुनर  आये -

अभी क्या  जो पाये  हैं  गम   कम हैं

ग़मख़ारी को फौलाद का जिगर पाये - 

दिल  में  हसरत  भी  है  जुस्तजू  भी 

देखने को  मोहब्बत भरी  नजर पाये -

                            -   उदय वीर सिंह 


3 टिप्‍पणियां:

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

थोड़े में बहुत-कुछ कह दिया.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी दुआयें असर पायें।