मंगलवार, 25 मार्च 2014

वो आँख भला ....

ऐसी भी  घोर निराशा क्योँ  
सुबह नहीं होती कैसे -

सत्य विलम्बित हो सकता है 
रचना खंडित होती कैसे -


आरत मन की भाव प्रवरता
विक्षोभ तली खोती कैसे -


जो मष्तिष्क,हृदय, हो सत्य निष्ठ
भाग्य भला सोती कैसे -


जब भाव भरे सम्पूर्ण सृजन के  
वो आँख ला रोती   कैसे-  


उदय वीर सिंह 
                                   


3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

उम्दा !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर ,प्रेरणादायक !
लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बस उत्साह तनिक बढ़ने का,
अपने से थोड़ा लड़ने का।