वो आँख भला ....
ऐसी भी घोर निराशा क्योँ
सुबह नहीं होती कैसे -
सत्य विलम्बित हो सकता है
रचना खंडित होती कैसे -
आरत मन की भाव प्रवरता
विक्षोभ तली खोती कैसे -
जो मष्तिष्क,हृदय, हो सत्य निष्ठ
भाग्य भला सोती कैसे -
जब भाव भरे सम्पूर्ण सृजन के
वो आँख भला रोती कैसे-
उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
उम्दा !
बहुत सुन्दर ,प्रेरणादायक !
लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
बस उत्साह तनिक बढ़ने का,
अपने से थोड़ा लड़ने का।
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