पीड़ा के कातर पंछी को
अभिव्यक्ति का पर देना -
न्यून हो धरती का आलय
उसे निखिल अम्बर देना-
सत्य - धरातल प्राचीरें
प्रायः उग जाती हैं बहुत
बने पराधीनता की कारा
उससे पहले गह्वर देना -
किसी हृदय का अमृत
बन उत्सर्जित हो विष
वाहिकाओं में उतर चले
विरोध निज में स्वर देना -
शिखा किसी कौटिल्य की
खुली रहे आखिर कब तक ,
सृजन हेतु नीहितार्थ नींव
मजबूत तराशे पत्थर देना-
प्रतिभा की कोयल, ले आड़
विपन्नता आखिर रोये क्यों
राग - माधुरी आकार वरे
कूकन को अपना घर देना -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर !
आपकी आशाओं को बल मिले..
bahut sundar abhivyakti....
एक टिप्पणी भेजें