रविवार, 9 मार्च 2014

" तनया ' से -

महिला दिवस पर मेरी पुस्तक " तनया ' से -
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धरती  और  आकाश  हैं  हमारी  बेटियां
पिछले जनम का ख्वाब हैं हमारी बेटियां- 
अनुत्तरित रहे हर दौर में पूछे गए कभी 
हर  प्रश्न  का  जबाब  हैं  हमारी बेटियां- 

दस्तकों के बाद भी, चौखटें बंद मिलती हैं 
ले  धोती  पांव  थाली  में  हमारी  बेटियां-
दर्द के गांव में जब स्नेह के पांव जलते हैं 
पीपल की  छाँव बनती हैं ,हमारी  बेटियां -

बज्राघात की पीड़ा जब अपनों से पायी है 
उस  वक्त की लुक़मान हैं हमारी बेटियां -
आग की  सेज सोयी हैं ,वनवास भी देखा
देश  धर्म  पर  कुर्बान  हैं  हमारी  बेटियां -

                                   - उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना ।
हम हैं क्योंकि हैं हमारे आस पास हमारी बेटियाँ :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हमारी बेटियाँ, हमारा गर्व, सदा ही उन्नत रहेगा।