मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

सुना नहीं पाये ..

लिखे थे गीत तुम्हें दिल से 
सुना नहीं पाये  -

बे-चिराग दिखे न हर्फ़ अंधेरों में 
जला नहीं पाये -

बारिस बे-हिसाब रही सिर पे
घर बना नहीं पाये -

सिलसिला -ए- जफ़ा कुछ रहा ऐसा 
वफ़ा नहीं पाये -

थे भींगे पैर कुछ जमीं गीली 
कदम बढ़ा नहीं पाये -

                     - उदय वीर सिंह  

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत खूब !

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कहींं-कहींं इन्सान बड़ा विवश हो जाता है - लेकिन
इससे क्या ,अपनी ओर से तो कसर नहीं रही !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, बहुत खूब।