कमजर्फ हाथों के सहारे ये सदमें है
डुलाओ चंवर कि चमन सकते में है
तकदीर लिखने को है हर कोई बेताब
बयाँ करती है तदवीर चमन खतरे में है -
ले आये शहर बांध सोने की बेड़ियों में
छटपटाहट है की वो कैद पिंजरे में हैसह न पाता है संग कागजी फूलों का
आत्मा भटकती कहीं गांव मजरे में है -
जम्हूरियत के फ़क़ीर आते थे बेदाग
अब दागी आभूषण बन पुरष्कृत हो रहे
बंधक हो गयी है पंचायत चमन की बेबस
मुक्त करना होगा चमन खूनी पहरे में है-
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
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