गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

चमन गांव- मजरे में है


कमजर्फ  हाथों  के  सहारे  ये  सदमें  है
डुलाओ  चंवर  कि  चमन  सकते  में है 
तकदीर लिखने  को है हर कोई  बेताब 
बयाँ करती है तदवीर चमन खतरे में है -

ले आये शहर बांध सोने की बेड़ियों में 
छटपटाहट  है की वो कैद  पिंजरे में है
सह न  पाता है  संग कागजी फूलों का
आत्मा  भटकती कहीं गांव मजरे में है -


जम्हूरियत   के   फ़क़ीर  आते  थे  बेदाग  
अब  दागी आभूषण  बन  पुरष्कृत हो रहे  
बंधक  हो गयी है पंचायत चमन की बेबस
मुक्त करना  होगा चमन खूनी पहरे में है- 

                                        -  उदय वीर सिंह 




1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...