राम बिना कैसा जीवन
चाहे तुलसी या कबीर के -
जीवन अर्थ सरल बनता है
प्रेम पयोधि शुचि नीर से-
बहती है रसधार राम की
काशी काबा हर कण कण में
सोचा जिसने वैसा पाया
मन - मंदिर या तस्वीर में-
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों को
प्राचीरों में क्यों बांध दिया
बिन राम ये सारे सूने हैं
दिन बिसरे राम की प्रीत में-
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
रामनवमी शुभ हो । सुंदर शब्द ।
राम हृदय बन जाते हैं, जब सुख आता है।
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