सोमवार, 14 अप्रैल 2014

बैसाखी - THE COMMITMENT -


बैसाखी  -  THE COMMITMENT  -
     बैसाखी की पूर्व संध्या पर बैसाखी की  देश व  विदेश वासियों को लख- लख बधाईयाँ व  प्यार 
      साथ  ही अमर शहीदों को भावभीनी  हृदय से श्रद्धांजलि -
बैसाखी 
अर्थतः ' वैसाख वाली ' वह भौगोलिक अक्षीय गतिकीय  अवस्था- प्रदत्त  तिथि जब सूर्य मेख राशि में प्रवेश करता है ,वैसाखी पर्व का आगाज होता है ।इस वर्ष 13 अप्रैल 2014 की मध्य -रात्रि को सूर्य अपना स्थान प्राप्त कर रहा है इस लिए यह पर्व 14 अप्रैल 2014 को मनाया  जा रहा है ।
        इस अप्रतिम तिथि को प्राकृतिक व अप्राकृतिक  इंकलावी घटनाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर युगों तक अपने  पहचान को अमर कर दिया है ।
     बैसाख सुदी 13 संवत 1756 [ 13 अप्रैल 1699  A D ] को दसम सिख- गुरु ,गुरु गोबिंद साहिब जी ने खालसा पंथ की साजना श्री आनंदपुर साहिब में की ।यह सृजन  एक  उद्दाम संकल्प -दिवस  व नव संस्कार- दिवस के रूप में माजी में अमिट सिरोमणि  तिथि के साथ खालसा- पंथ का स्वरुप  पाया । यह त्रासदी, आतंक ,अन्याय, जोर- जबर जुल्म के विरूद्ध ही नहीं ,यह देशी  धर्मांधों के भी विरूद्ध था, जिन्हों ने इस वतन को नारकीय स्थिति में विदेशी आतंकियों से पूर्व ही पहुंचा दिया था । यह आवश्यक हो चला था की उनका भी सोधन हो ,समाज को एक नयी प्रेरणा व दिशा की जरूरत थी,एकता की जरूरत थी ,भय- भूख से मुक्ति की आवश्यकता थी, ,आत्मबल चाहिए था ,प्यार व समरसता का सरोकार वांछित था ,शोषण -कर्ता अब शोषितों की श्रेणी में था ,समूचा भारतीय परिदृश्य ही  लाचारगी में था ,इस अंधकार में मार्तण्ड बनकर यह तिथि सुशोभित  होती है जिसके रचनाकार दसवें पातशाह होते हैं 
      ' मानुख की जाती सब  एकै पछानिबो ' 
खालसा पंथ में उंच -नीच का विचार ही समाप्त हुआ ,सब अमृतधारियों की एक जाति 'सिख' हुई ,आतंक के  खात्मे व अमन के सँस्थापनार्थ एक पंथ का सृजन  हुआ, श्री आनंदपुर साहिब  की सभा में  दसवें गुरु साहिब जी द्वारा परीक्षणार्थ वलिदानियों की मांग की गयी,तब सर्व प्रथम-
दया राम जी 
धरम चंद जी   
हिम्मत राय जी  
मोहकम चंद जी 
साहिब चंद जी 
     ने आत्मोत्सर्ग के लिए स्वयं को अर्पित किया । जो विभिन्न जातियों व  प्रान्तों  से थे  ।,उन्हों ने  पंज प्यारों में अपना नाम  ही नहीं पाया ,वरन दसवें पातशाह को पाहुल [अमृत ] पिला  दीक्षित भी किया । 
         ' वाह, वाह गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला ' 
    गुरु महाराज ने उन्हें सिंह से नवाजा ,यह अभूतपूर्व ऐतिहासिक बैसाखी  तिथि अमर संकल्प- दिवस बनी। 
    कुछ स्नेही अति उत्साही जनों के लिए बैसाखी अवसर व धन-धान्य के लिए जानी जाती है कारण है ,
नयी फसल कनक [गेहूं ] का पक कर कटाई के लिए  तैयार होना भी । पर  यह तथ्य गौड़ हो जाता है ,
धन धान्य के लिए सांसाधन तो और भी थे। जिनके लिए वतन पहले है ,धन-धान्य बाद में उनके लिए
 बैसाखी  संस्कार बनी ।
          जो तो प्रेम खेलन का चावो , सिर  धर तली  गली मेरे आवो 
     पर्व बैसाखी 13  अप्रैल 1919 स्थान अकाल-तख़्त  हरिमंदिर साहिब [अमृतसर ] में  दूसरे छद्मवेशी आततायियों अंग्रेजों  के  जुल्म के  विरोध स्वरुप आयोजित  सभा जिसमें  निहत्थे निर्दोष जनों को चारों ओर  से घेर कर गोलियों से भून दिया गया ,पराकाष्ठा थी निर्ममता की । हज़ारों लोग  गए 
 यह पर्व पुनः हजारों वलिदानियों के वलिदान  का गवाह  बना । बैसाखी पुनः संदर्भित हुई अपने त्याग व उर्जास्रोत के लिए ।
    वस्तुतः बैसाखी की पगड़ी  में सारे  रंग  विद्दमान  हैं । बैसाखी प्रेम और वलिदान की पहचान , ख़ुशी और गम को सीने में समेटे ,सबके प्रति समान -भाव सहित  सुख और समृद्धि,अमन की छाँव लिए बैसाखी सबके  जीवन  की प्रेरणा,सददभाव स्रोत बने यही  कामना  है ।
                 भीड़ तां  एकट्ठियां  बधेरियां हुंदियां 
                 बैसाखी दी भीड़  नु मेला कहिन्दे  ने -

                                                                        उदय वीर  सिंह                                    
                   
   
        

5 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आपको भी बधाईयाँ ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार (14-04-2014) के "रस्में निभाने के लिए हैं" (चर्चा मंच-1582) पर भी है!
बैशाखी और अम्बेदकर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Dwarika Prasad Agrawal ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति.....बधाईयाँ॰

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपको भी वैशाखियों की शत शत बधाइयाँ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति......
वैशाखियों की हार्दिक बधाई!