ताश का शहर देखा-
रेत की दीवार का घर देखा
ताश के पत्तों का शहर देखा-
पत्थर घरों में रहने वालों का
तूफान से बेहिसाब डर देखा -
सहन में ठूंठ हुए तंगदिली से
घरों में बनावटी शजर देखा-
बनाये झूठे दस्तावेज कितने
कलम के इर्दगिर्द खंजर देखा -
जो दिल में आया कहा वही उदय
न गजल देखी न बहर देखा-
- उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना शनिवार 03 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
very nice
Asha
सुंदर ग़ज़ल
मन की कहना, कुछ न सहना।
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