शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

माई के गांव में ....

माई   के  गांव  में
पीपल  की छाँव में
गोरी  के   पांव  में
झांझर के गीत अब सुनाई न देते हैं -
मक्के दियां  रोटियां
मक्खन चे मलाईयां
लस्सी भरी कोलियां
सरसों के साग अब दिखाई न देते हैं
गीतों   में   बोलियाँ
मिश्री  की  गोलियां
हथ गन्ने की पोरियाँ
बापू के गांव अब दिखाई न देते हैं -
जलायी गयी है प्रीत
मिटाई गयी  है प्रीत
सताई  गयी  है  प्रीत
प्रीतम के गांव अब सुहाई न देते हैं -

                          - उदय वीर सिंह






3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत उम्दा रचना ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (12-07-2014) को "चल सन्यासी....संसद में" (चर्चा मंच-1672) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।