माई के गांव में
पीपल की छाँव में
गोरी के पांव में
झांझर के गीत अब सुनाई न देते हैं -
मक्के दियां रोटियां
मक्खन चे मलाईयां
लस्सी भरी कोलियां
सरसों के साग अब दिखाई न देते हैं
गीतों में बोलियाँ
मिश्री की गोलियां
हथ गन्ने की पोरियाँ
बापू के गांव अब दिखाई न देते हैं -
जलायी गयी है प्रीत
मिटाई गयी है प्रीत
सताई गयी है प्रीत
प्रीतम के गांव अब सुहाई न देते हैं -
- उदय वीर सिंह
पीपल की छाँव में
गोरी के पांव में
झांझर के गीत अब सुनाई न देते हैं -
मक्के दियां रोटियां
मक्खन चे मलाईयां
लस्सी भरी कोलियां
सरसों के साग अब दिखाई न देते हैं
गीतों में बोलियाँ
मिश्री की गोलियां
हथ गन्ने की पोरियाँ
बापू के गांव अब दिखाई न देते हैं -
जलायी गयी है प्रीत
मिटाई गयी है प्रीत
सताई गयी है प्रीत
प्रीतम के गांव अब सुहाई न देते हैं -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा रचना ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (12-07-2014) को "चल सन्यासी....संसद में" (चर्चा मंच-1672) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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