रविवार, 6 जुलाई 2014

बाग बाग़ हो गया है ...


ये ज़माना  भी ओढ़े  हिजाब  हो गया है
सवाल ही सवालों का जवाब  हो गया है -
झूठ  भी  लगे है कितना खूबसूरत  यारा
हथेली  पर  जुगनूं  आफताब   हो  गया -

कसूरवार  हूँ  कि,  देश  मेरा  भी  है उदय
सोया हूँ बड़ी उम्मीद से सुनहरे  ख्वाबों में
उम्मीद से फिर बड़ी उम्मीद की ओर दिल
मदारियों के खेल से  बाग बाग़ हो गया है -

                                       -  उदय  वीर सिंह 

1 टिप्पणी:

Asha Lata Saxena ने कहा…

पढ़ कर मजा आया |