मंगलवार, 12 अगस्त 2014

नयी सोच की बस्तियां.....

तेरा अस्तित्व किसी व्यवस्था से नहीं,
व्यवस्था तुमसे है अहसास तो कर -

कैद है तमाम जिंदगी जुल्मों सितम की जेल 
साजिशों से उन्हें आजाद तो कर-

बन एक चिराग के जलने की वजह कामिल 
परवानों के जलने की परवाह न कर-

उजड़ कर ही बसी हैं वो उनकी फितरत है 
नयी सोच की बस्तियां आबाद तो कर -

- उदय वीर सिंह