अपनी नजर देखता हूँ-
अपनी आँखों में उजड़ा वो घर देखता हूँ
आग की अब लपट में शहर देखता हूँ -
थी संगमरमरी कल हवेली अपने हुश्न में
आज अश्कों में भीगा खँडहर देखता हूँ-
था आबाद हाथों, गुल गुलाबों का मंजर
आज बर्बाद गुलशन ,दर- बदर देखता हूँ -
कभी माज़ी की नज़रों से देखा चमन को
आज अफ़सोस अपनी नजर देखता हूँ-
- उदय वीर सिंह
अपनी आँखों में उजड़ा वो घर देखता हूँ
आग की अब लपट में शहर देखता हूँ -
थी संगमरमरी कल हवेली अपने हुश्न में
आज अश्कों में भीगा खँडहर देखता हूँ-
था आबाद हाथों, गुल गुलाबों का मंजर
आज बर्बाद गुलशन ,दर- बदर देखता हूँ -
कभी माज़ी की नज़रों से देखा चमन को
आज अफ़सोस अपनी नजर देखता हूँ-
- उदय वीर सिंह
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